ai zindagi
Monday, July 05, 2010
जैसे सुबह का ओस
जैसी मरमरी धूप
कोई मासूम दर्द सा
कोई हल्का सा लम्हा जैसा
आकर रूक गया है
आखों के दर पर
तुमने जो बहार लाने का इरादा किया है,
खुशी लेकर दुनिया भर की
नए मौसम का पैगाम ले’के
आ गई मेरी आखोँ में
आज ये पहली बारीश
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment