Monday, April 12, 2010
अर्ज़ किया है...
ये पहाड़, ये वादियाँ
ये फूल, ये पत्ते
पहाड़ों के गले से लगकर
मचलती ये नदी
रंगों का ये हसीन खेल
ये पंछी, ये तितलियाँ,
ये बरगद, ये बेल
सब देखना चाह्ती हूँ,
पर तुम्हारे साथ..
देख रही हूँ, महसूस कर रही हूँ
ये सब बसे हैं
जैसे तुम्हारे नस-नस में
छेड़ रहे हैं ये तुम्हारे मन के सुर-तान को..
जब देख रहे हो इनको तुम,
मुझे भी दिखाओ,
क्या देख रहे हो तुम
क्या महसूस कर रहे हो,
मुझे भी महसूस करने दो
खोए-खोए से, इन नज़ारों को सुन रहे हो तुम
और हलचल सी हो रही है मेरे मन में..
कहाँ हू मैं, तुम्हारे ख्यालों में?
इन फूलों के साथ, हवाओं के साथ
इन नज़ारों के साथ,
मुझे भी तो शामिल करो अपनी ज़िन्दगी में !
अनिन्दिता 16.12.2002
Photograph source: Internet
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purane zamane yaad aa gaye....shukriya un lamhon ko taaza karne ke liye
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