पापा! फिर सुलाओ मुझे
कहानियों के तकिए पर
फिर गुनगुनाओ कानों में
परियों की कहानी कोई
खिड़्की से हाथ बढाकर
भरो चाँद को मुट्ठी में
और मेरे कमरे की कीलों से
लगा दो उसे
फिर सपने दिखायो
सात घोड़ों पर सवार राजकुवरों का
मेरी गुड़ियों का नाम सोचो
करो तैयारी उन्हें विदा करने की
किसी मासूम शरारत पे तुम डाँटो फिर
मैं मुँह फुला लूँ तो
तुम मनायो टौफियों से मुझे
जो बड़ी हो गई
ज़माने ने दर्द भी बड़े दिये
खिलौने टूटने का वो हसीन दर्द
लौटा दो मुझे
मैं चलूँ ज़िन्दगी
नन्हें कदमों से
तुम्हारी ऊँगलियाँ पकड़के
तुम सँभालो मुझे
डर लगता है बड़ों की दुनिया में
अपनी पनाह में
पापा! छुपालो मुझे
अनिन्दिता 31.03.1996
Photograph source: internet
so sweet....and poignant
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