Monday, October 25, 2010

तोह्फ़ा



देते हैं तोहफ़े आपस में
जब भी बिछड़ते हैं लोग
तुम भी मुझे, जाने से पहले
कोई तोहफ़ा दे दो

मेरी मुट्ठियों में भरकर
ज़रा तुम्हारी कुछ सासें दे दो

कभी इसको शाखों पर बसाकर
आशियाना बना डालूँगी

कभी दिल से लगाकर अपने
धड़कन बना डालूँगी

कभी किताबों के सफ़ेद-काले पन्नों के बीच
उसको रख दूँगी

कभी कलम में डालकर
उसे तहरीर बना डालूँगी

दामन में कभी बसाकर उसे
खुशबू का नाम दूँगी

कभी सासों में घुलकर उसे
नशा बना डालूँगी

तकिए के नीचे रखकर कभी
उसको सपनों में बसायूंगी

कभे धूप बनाकर उसे
बालों में छुपा लूँगी

मखमली चादर में डालकर
उसको ओढ़ लूँगी

कभी ज़ेवर बना कर उसे
मैं पहन लूँगी

रहेगी बनकर एक हिस्सा तुम्हारी,
ये साँसें
दे दो, हाँ कुछ चन्द साँसें
उनसे ज़िन्दगी बना लूँगी

Anindita Baidya
(written on 08 Nov 1994)

Photograph source: The internet

1 comment:

  1. wah kya khub, ishq mein puri tarah se bhige hue ehsas.. khud ba khud dua ke liye sir jhukta hai ki tumhari yeh khwahish puri ho

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