Monday, February 06, 2012

भोला बचपन










कल ही तो रूठ गए थे आज मना लिया..
जिससे थी नाराज़गी कल आज गले लगा लिया!



अब रूठ जाए, अब मान जाए भोला यह मन तुम्हारा...

क्यों नहीं होता ऐसा बड़ों का भी दिल, हमारा?

कभी उड़ते हो आसमान पर, कभी डेरा बादलों पे
चाँद को करके मुट्ठी के भीतर छुपा देते हो तकिए पे



नींद में आकर सपनों की रानी जाने कहां ले जाती तुम्हें!

नींद में, लिपट कर हमसे, जगाते हो क्यों कभी हमें?


एक दिन पलक को रखकर अपनी हथेली के उपर,

माँगा अपने ख़ुदा से तुमने अपने कंधों के लिए दो पर


उड़ने को बेताब तुम्हारा दिल चंचल तुम्हारा मन....

खिले-पले, रहे आबाद हमेशा.. तुम्हारा यह भोला बचपन






अनिन्दिता

22.01.12

2 comments:

  1. Beautiful...! Each language brings out something special in your expression!

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  2. its like the glorious past...you reflect with so much of pride and wish it was the same in the present and the future

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