Wednesday, March 10, 2010

ख्वाईशें


बाहों के दायरे में ,
आँखों के घेरे से ..
दहलीज़ के हद तक...
देखा, दुनिया को, झरोखे से..

शायद हैं और भी
किस्से-कहानियाँ,
शायद हक़ीकत
और भी है, जुदा
मेरी किताबों से...

हवा मिले जो
मेरे पंखों को,
जाकर देख आऊँ
दुनिया को, माँ!

मुझे सीखा दो उड़ना...
ज़रा मैं आसमान छू लूं, माँ!
खुली हवा, खेत-खलियान
बदन में लगा आऊँ, माँ!

चोट होती है क्या
दवा क्या होती है
सीख कर आऊँ, माँ!
ज़रा उड़ना तो सीखा दो मुझे,
मैं तुम जैसी बन जाऊँ, माँ!

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